रविवार, 26 जुलाई 2009

और एक बार फिर मेरी मौत हो गयी...

क्या सोचने लगे जनाब? यही कि इंसान तो एक ही बार पैदा होते है और एक ही बार मरता है लेकिन यहाँ पर "एक बार फिर मेरी मौत हो गयी" सोच कर अजीब लग रहा है? वैसे अगर लिखने वालों की बात करूँ तो ये कहना एकदम सही है कि ये मरते नहीं हैं, इनकी आत्मा किताब के पन्नो के बीच में दबी होती है और जैसे हो कोई उस पृष्ठ को खोलता है आत्मा बाहर आ जाती है। खैर, "मैं "अभी अपने शरीर में ही हूँ। एकदम सही सलामत, पर ये जो "मैं" है न, इसने खासा परेशां करके रखा है मुझे। ये "मैं " ही हर बार दम तोड़ देता है, कल रात भी ऐसा ही हुआ। फर्क इतना था कि कल रात I committed suicide और मैंने किया भी। और कल से पहले कई बार मैं बिना suicide के मारा गया। पर सवाल ये उठता है कि मैं मरता हूँ और फिर जिंदा हो जाता हूँ, कैसे? मेरा जीवन किसी पौधे के बीज की तरह है, जो एक जिंदगी के साथ धीरे-धीरे अंकुरित होता है। ये सच है कि मैं एक ही बार पैदा हुआ हूँ पर मौत कई बार हुई है। आज से कुछ साल पहले मेरे ह्रदय में मेरे बड़े भाई के लिए स्नेह का बीज जो था वो उसकी मृत्यु के पश्चात नष्ट हो गया। ये मेरी पहली मृत्यु थी। हाँ, अंश बाकी हैं अभी भी। उसके बाद फिर से किसी ने प्रेम का बीज बोया, उसका अंकुरण हो ही रहा था कि वो भी नष्ट हो गया, ये दूसरी बार मौत हुई। तीसरी बार तब जब पिता के सपनों को पूरा करने में असमर्थ रहा, चौथी बार फिर से प्रेम का अंकुरण हो ही रहा था कि वो संक्रमण का शिकार हो गया, इस प्रेम के अंकुरण पर अभी एक बात याद आ रही है। वो है एक फ़िल्म का संवाद, "लव आजकल" जिसमें ऋषि कपूर सैफ अली खान से कहते हैं, "सच्चा प्यार एक वार ही हुंदा है राजे" तो सैफ कहता है "मुझे तो कम से कम पंद्रह बार हो चुका है।" क्यों नहीं हो सकता यार, प्रकृति से सीखो... क्या धरती पर एक नस्ल के ढेर सारे पौधे नहीं हैं? हैं न! क्या कोई चीज़ दुबारा नहीं हो सकती? बेशक हो सकती हैं, भले ही एक जैसी न हो पर हो ज़रूर सकती है। खैर, बात करें अगली मौत की तो एक बहुत अजीज़ मित्र के जाने पर फिर से मौत हुई मेरी, और कल रात जब मेरे अस्तित्व को नकारा गया तो फिर मेरी मौत हो गयी। मेरी जिंदगी से जब-जब कोई जाता है, तब मेरी मौत होनी है ये मुझे मालूम है। क्योंकि मेरा जीवन इन सबसे जुडा हुआ है। मुझे मरने से बिल्कुल परहेज नहीं है क्योंकि मरने के बाद जो मेरा फिर से जन्म होता है वो पिछले से बेहतर होता है क्योंकि जिंदगी के लिए फिर से नया कुछ होता है। फर्क इतना है कि मैं अपनी पुरानी मौतें नहीं भूलता। मरने पर तकलीफ तो होती है पर हर तकलीफ में एक सबक होता है। फिर जिन्दा होता हूँ मैं मरने के लिए। इस मौत से मैंने क्या सबक लिया पता? यही कि अब मेरी अगली मौत इस वाली से अलग होगी और दुबारा मैं एक ही मौत नहीं मरूँगा। हालाँकि इतनी मौतों पर मेरी हालत कुछ ऐसी है जैसी इस शेर में कही गयी है....

मैं अपने ज़रफ से गिरता नहीं हूँ,
समंदर हूँ, कोई कतरा नहीं हूँ,
ये कहदो जाकर शहर वालों से,
मैं टूटा हूँ अभी, बिखरा नहीं हूँ...

(मजीद शोला की एक क़वाल्ली से)

2 टिप्‍पणियां:

Unknown ने कहा…

bahut khoob kaha................
baat hai aapki baat me
badhaai !

shama ने कहा…

Waah...sundar lekhan...aur ateev sundar qavvalee ke alfazon se uska ant...!

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