गुरुवार, 25 जून 2009

किसी मतलब का नही बंद.

२३ जून जबलपुर बंद...दुकाने बंद, सड़क पर ऑटो बंद, पर अपना ऑफिस खुला का खुला । भला रेडियो भी कभी बंद होता है। उस दिन बड़ी जबरदस्त भूख भी लगी थी, खाने का टिफिन भी ऑफिस नही आया, टिफिन वाले ने बिना बताये हमारे प्राण लेने शुरू कर दिए, और तो और उसी दिन अपना पर्स भूलना था मुझे घर पर। क्रिटिकल कन्डीशन, भूख है की बढती जा रही थी। सोचा साथ वालों से कुछ पैसे लेकर कुछ मंगवा लूँ, हालांकि जबलपुर बंद था पर हमारे बिल्डिंग के ग्राउंड फ्लोर की बेकरी का आधा शटर खुला हुआ था। इससे पहले वो बंद हो जाता, मैंने अपने साथ अपने दोस्तों के लिए पेटिज़ मंगवा ली। पेटिज़ आने के बाद भूख का मामला निपटा, महज़ दो पेटिज़ खाकर अपने शाम के तीन शो किए। मेरा दोस्त ऑफिस आया घर की चाबी लेने, रात के लगभग ९:३० बज रहे थे, तब तक टिफिन नही आया था, यानि टिफिन वाले ने भी अघोषित अवकाश ले लिए था। खैर हम तो ऐसी ही स्थितियों में सर्वाइव करने के लिए पैदा हुए हैं, इसलिए फिक्र का नामो निशाँ नही था। जो मेरा मित्र मुझसे मिलने आया था उसने जाकर खाना पैक करवा लिया और ऑफिस ला दिया, जिससे मैं और मेरा एक सहकर्मी भूख की वजह से कल के अखबार की हेड लाइन बनते बनते रह गए। भोजन करने के बाद कुछ काम था, तो मैं कंप्यूटर पर व्यस्त हो गया। मेरा दोस्त घर जाने के लिए मेरा इंतज़ार कर रहा था। जैसे तैसे १२ बजे के बाद ऑफिस से निकला और बस स्टैंड गए चाय पीने। घर को लौट ही रहे थे की रास्ते में एक खाकी वर्दी वाले भाईसाब ने हाथ देकर रोका, आग्रहपूर्वक पूछा की कहाँ तक जा रहे हो? उन्हें मेरे घर से करीब २ किमी आगे जाना था। फ़िर भी मैंने उन्हें बैठा लिया, रास्ते में उन्होंने बताया की उनकी गाड़ी पंचर हो गई है और आज जबलपुर बंद था इसलिए परेशान हैं। ऊपर से पुलिस की नौकरी, कहने लगे की सुबह से जबलपुर बंद में व्यस्त थे...और शाम को नर्मदा के किनारे परेशान हो रहे थे, कोई लड़का डूब गया था किसी संघ का, मुख्यमंत्री जी के फ़ोन की वजह से पूरा पुलिस विभाग लगभग तट पर ही था। अब पुलिस क्या क्या करे? जबलपुर बंद का कोई मतलब नही है क्योंकि दूध की मूल्यवृद्धि के विरोध में बंद हुआ है और जिन डेरियों की वजह से परेशानी है वो या तो नेताओ की हैं, या फिर उनमें सांसदों या विधायकों का पैसा लगा हुआ है, तो क्यों कोई नेता अपना नुकसान करना चाहेगा, नेताओ की वजह से कानून व्यवस्था भी बिगड़ रही है। अगर इनके किसी कार्यकर्ता को पकड़ लो तो फ़ोन आ जाता है विधायक का कि देख लेना अपना लड़का है, अब विधायकों को भी तो चाहिए कोई झंडे और बैनर लगाने वाला और इन लड़को को चाहिए माई-बाप। मेरा घर आया तो मैंने अपने दोस्त को घर कि चाबी देकर रवाना कर दिया फ़िर उन्हें लेकर आगे बढ़ गया। जब उन्हें पता चला कि मेरे पिताजी भी पुलिस में हैं तो कहने लगे कि तुम अपना जीवन संवार लो, क्या रखा है प्राइवेट नौकरी में। अगर कुछ बन जाओगे तो पिताजी को लगेगा कि तुम कुछ अच्छा कर पाये। ह्म्म्म्म्म... पर इन्हे कौन समझाए कि मैं भीड़ से अलग चलने का मन बनाकर ही निकला हूँ और सोचो अगर मैं आज रेडियो में जॉब नही कर रहा होता तो शायद खाकी वर्दी वाले अंकल मेरे साथ उनके घर नही जा रहे होते। बातों ही बातों में बताया कि उनके नगर पुलिस अधीक्षक से भी सवाल जवाब वाले प्रोग्राम में रु-ब-रु हो चुका हूँ तो वो खुश हुए, जाते जाते कहने लगे कि सीधे घर जाना, वक्त बहुत ख़राब चल रहा है। मैं निकल गया अपने घर के लिए , सोच रहा था कि वक्त तो वही है बस लोगों का नजरिया बदलता जा रहा है। किसी को फायदा चाहिए तो किसी को सुविधाएँ, लेकिन ख़ुद के लिए भले ही दूसरे परेशान होते रहें। वक्त उतना भी ख़राब नहीं, वरना मैं जल्दी घर चला गया होता या फिर किसी के हाथ देने पर रुकता ही नहीं, चाहे वो कोई भी हो। फिलहाल अभी के लिए विदा...रात के बारह बजने में बस १७ मिनट ही बाकी हैं...

मंगलवार, 23 जून 2009

एक रात जैसे एक लम्हा......

जिंदगी आपको कब कौन सी खुशी दे दे, इसका अंदाजा आप नही लगा सकते। पिछले कुछ दिनों से मेरे साथ यही हो रहा है। जिंदगी के कैनवास से अगर कोई रंग धुल जाता है तो उसकी जगह कोई नया रंग ले लेता है, हांलाकि ये ज़रूरी नही कि खाली जगह एकदम से भर जाए। इंतज़ार करना बेवकूफी है, आप बस अपने काम में लगे रहिये। जीवन आपको किसी ऐसे रास्ते पर ज़रूर ले जाएगा जहाँ आप अकेले नही होंगे। तारीखों का ज़िक्र करना मैं ज़रूरी नही समझता फिर भी वो रात मैं नही भूल सकता, जब मैं खुशियों की आगोश में था। यकीन मानिये जब आप खुश होते हैं तब आप यही सोचते हैं कि जिस पल में आप खुश हैं, वो वही थम जाए... कल सुबह की ही बात है जब मैं उस हँसी मिजाज़ को रुखसत दे आया। खैर ये फासले ज़्यादा दिनों तक नही रहेंगे, मैं जानता हूँ...कुछ दिनों बाद मैं फिर से मुस्कुराऊंगा।

इस बार कोशिश यही कि इस बार मेरी मुस्कराहट, दबे पाँव से आए और रूह तक जा पहुंचे, किसी को पता भी न चले। वैसे किसी को पता चलता भी नही है। कल मैं अपने दोस्त के शॉप पहुँचा, देर रात को उसकी शॉप खुली हुई थी, मेरे साथ मेरा एक दोस्त भी था जो मेरे साथी ही ऑफिस में है। उसे सिगरेट लेनी थी और मुझे सिम, मेरा दोस्त जो शॉप में बैठा हुआ था उससे मुझे एक सिम खरीदनी थी, वो हम दोनों से बोला कि भाईसाब! आपको तो कहीं आने जाने का टाइम नही मिलता होगा न, मैंने कहा - नही मिलता भाई...(सच ही है)। पर उस वक्त उसने ये कहकर चौंका दिया कि आपको वैसे भी कही आने जाने की ज़रूरत नही है, क्योंकि खुशी आपके आस-पास जो रहती है। वो शायद मेरे काम की बात कर रहा था, जिसके साथी मैं हमेशा कुछ रहता हूँ, लेकिन मुझे अब भी वही खुशी याद आती है, जिसके हर पल रहने की उम्मीद मैं ख़ुद से करता हूँ....खैर इस वक्त मेरे बाजू में मेरा एक अभिन्न मित्र बैठकर प्रतीक्षा कर रहा है की मैं कब घर जाऊँ, और तो और एक दोस्त और आ गया है जिसे मैंने लस्सी लाने को कहा था....सही बात है, खुशी मेरे आस-पास ही है...जिसे मैं हर पल महसूस कर सकता हूँ.....(रात के १२ बजकर छे मिनट हो गए हैं और बीतने को एक लम्हा बाकी है। ) .....शब्बाखैर!!!

शनिवार, 13 जून 2009

प्यार? प्यार? प्यार?

क्या हुआ ? अरे यार रेडियो जौकी भी इंसान ही होते हैं, और प्यार जैसी चीज़ से कौन बचा है? तो याद आया मुझे कि कभी इस दौर से भी गुज़र चुका हूँ। अक्सर जब आप लव स्टोरीज़ देखते हैं (जैसे मैंने आज देखि " A Walk to Remember") तो आपको भी अपनी कहानी याद आने लगती है, लेकिन अपने साथ ऐसा कुछ नही हुआ.........सच्ची। अब क्या गीता पर हाथ रख कर कसम खानी पड़ेगी।

मेरे साथ मेरी एक दोस्त भी यही फ़िल्म देख रही थी, उसने भी मुझसे पूछा कि क्या तुम्हे अपनी गर्लफ्रेंड की याद नही आती ( तो यार अब नही आती तो नही आती, अब आप अगर याद को रिश्वत देकर काम करवा सकते तो भी मैं शायद उसे याद नही करना चाहता।) खैर फ़िल्म बहुत अच्छी थी। पर फ़िल्म देखने के बाद एक अहसास हुआ की अगर आप किसी से प्यार करने लगते हैं और चाहते हैं कि आप जिसे प्यार करते हैं उसे ये मालूम चल जाए कि आप उसे प्यार करते हैं और वो भी आपका प्यार स्वीकार कर ले, वो लम्हा कितना मजेदार होता है, जब आपका दिल उसे देखते ही बल्कि उसके बारे में सोचते ही आपका दिल ज़ोर ज़ोर से धड़कने लगता है। हालाँकि जो फ़िल्म मैंने देखी, उसकी कहानी अलग थी। तो मैं फ़िल्म की बात नही कर रहा हूँ। अगर आपने उस लम्हे को जिया है तो शायद आपको बात समझ आए। अगर आपको इस बात का डर है कि अगर आप अपने प्यार का इज़हार करते हैं और वो आपके प्यार से इनकार कर देती है, तब आपका क्या होगा? वैसे एक चीज़ और भी है, अगर आपका प्यार स्वीकार हो भी जाता है तब शायद उन लम्हों जैसे feeling नही रह जाती।
जब आप किसी से प्यार कर बैठे हैं तो आपके लिए उस इंसान की हर एक चीज़ कीमती हो जाती है, उसकी बोली, उसकी गाली, उसका हँसना, उसका चीखना-चिल्लाना, उसका एक फ़ोन कॉल.....हाहाहाहाहाहाहा। और जब आपके प्यार का इकरार सामने वाला कर लेता है तब, तब तो कुछ दिन की मौज और उसके बाद....सुनो न; मैं काम कर रहा हूँ बाद में बात करेंगें या अभी मैं दोस्तों के साथ हूँ। अचानक प्यार की कीमत कम हो जाती हैं या प्यार करने का तरीका बदल जाता है। पहले जिसके लिए अपने ज़रूरी से ज़रूरी काम के बीच में से भी वक्त निकाल लिया करते थे, आज वही आपके वक्त के लिए तरस रहा होता है।
तो ये समझना बहुत मुश्किल है की ये प्यार किस खेत की मूली है, या ये मूली जैसा है भी या नही, जो देखने में सफ़ेद है और खाने के बाद....आप जानते हैं कि मूली खाने के बाद क्या होता है। खैर....पिछले महीने मैंने टेलिविज़न में एक मूवी देखी थी, "Life in a Metro" जिसमें एक बहुत अच्छा संवाद था....."रिश्ता (कोई भी रिश्ता) गारंटी कार्ड के साथ नहीं आता, प्यार होने से होता है और रिश्ता निभाने से निभ जाता है।" अच्छी बात कही थी बन्दे ने! खैर अभी शुभरात्री, बाकी बातें बाद में............