पिछले चार साल से ये ब्लॉग ऐसे बंद पड़ी थी जैसे दिमाग़ का कोई हिस्सा। यादें होती तो शायद धुंधली पड़ जातीं लेकिन सारी चीज़ें जहाँ की तहाँ हैं, इसमें ताज्जुब की बात इसलिए नहीं है क्योंकि सब-कुछ तकनीक का कमाल है. अगर आपके मन में यह प्रश्न है कि आज इस ब्लॉग की याद कैसे आयी? तो इसका जवाब है "बेचैनी"। आज सुबह बाक़ी दिनों की अपेक्षा जल्दी ही जाग गया था, सोच रहा हूँ कि इसे आदत बना लूँ. फिर मन में आया कि एक ब्लॉग बनायी जाये जिसमें रोज़ सुबह कुछ पोस्ट किया जाए. नई ब्लॉग के लिए मनमाफ़िक नाम नहीं मिल रहा था.थोड़ी देर छटपटाता रहा, फिर देखा कि पुराने ब्लॉग लिस्ट में "बेचैनी" मौजूद है. इस ब्लॉग में मेरे व्यक्तिगत जीवन से जुड़ी बहुत सी बातें पहले से हैं, पहले इन्हें हटाने का विचार आया किया लेकिन यह विचार बदल गया. सोचता हूँ कि लोग अपना व्यक्तिगत जीवन क्यों छिपाते हैं? ये उनका निजी मामला है इसलिए टिप्पणी नहीं करूँगा। जहाँ तक मेरी बात है तो मुझे अपने व्यक्तिगत जीवन को छुपाने में कोई रूचि नहीं है. इसलिए जो जैसा लिख दिया गया है, वो वैसा ही है. इस बार बेचैनी तो बहुत है, देखते हैँ इस बार ये कहाँ तक ले जाती है।
1 टिप्पणी:
मैं ... ,
जानता हूँ ;
हाथ पैर मारने से ,
ध्येय नहीं मिलते ,
क्या ? कम है
ये ...कि ,
हौसला इंसानी
भी नहीं डिगता |
~ प्रदीप यादव ~
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