आज शाम टीवी पर देखा कि पूरनमासी का चाँद,
पिछली कई पूरनमासी की रातों के मुकाबले,
काफी बड़ा और खूबसूरत दिख रहा है,
देर रात को मैं भी चढ़ा छत पर कि देखूं तो,
आखिर क्या माजरा है?
बिलकुल मेरे सिर के ऊपर था वो,
जब नज़र उठाकर मैंने देखा तो,
तुम्हारा गुलाबी चेहरा नज़र आया उसमें,
ठीक वैसा जो तुम "उसके" साथ घूमने जाने के लिए,
लिये बैठी थीं,
उस रोज़ तुम्ही ने बताया था मुझे,
कि तुम्हें जाना है कहीं "उसके" साथ,
धीमा हो गया था मैं, मंद पड़ गयी थी धड़कन,
काँप गया था! जैसा अभी काँप रहा हूँ सर्द रात में...
3 टिप्पणियां:
sundar rachna
aapke kapkapahat ko mai mahsus kar paa raha hun.
सुंदर रचना , अच्छे भाव
surya ek baat toh hai tum jo kuch bhi likhte ho woh sidhe dil ko touch karta hai...beautiful..:)
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