कुछ देर के भूल जाओ खुदको,
आखिरी शब्द तक बस "मैं" हो जाओ,
कल दोपहर हुस्न की बाँहों में था,
देर तक, उलझा हुआ,
बहुत सारी ख़ामोशी बाँटी थी हमने,
एकदम वैसी जैसी किसी बवंडर के पहले होती है,
पहले कभी उसी हुस्न को मोहब्बत कहते थे,
पर जिस वफ़ा ने कईयों के तख्ता-पलट कर दिए थे,
उसी वफ़ा ने मोहब्बत को भी,
हुस्न में बदल दिया,
अब तक जो एकदम साफ़ थी नीले आसमां की तरह,
जिसे आजतक कोई बादल न ढँक पाया था,
और न ही बदल पाया था,
पर कल रात, उस हुस्न को किसी और की बाँहों में देखा,
और यही सोचता रह गया,
परी है या तवायफ़...
2 टिप्पणियां:
पर कल रात, उस हुस्न को किसी और की बाँहों में देखा,
और यही सोचता रहा गया,
परी है या तवायफ़...
Sundar bhav!
कल ईश्किया फिल्म देखी..यही सीन और यही डायलॉग..कि परी थी या तवायफ!
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