मंगलवार, 2 फ़रवरी 2010

घर

मेरे घर के सामने का मकान,
वैसे तो टायर का गोदाम है,
उसकी अंदरूनी दीवारें रबर की कालिख से,
रंग गयी हैं,
मकान के अन्दर बस नए टायरों की महक है,
जो उसका दम घोटती हैं,
वो मकान किसी से बात तक नहीं करता,
पर आज सुबह,
कई सालों से उदास उस मकान की आवाज़ सुनकर,
मैं घर से बाहर निकला,
वो हँस-हँस कर बातें कर रहा था,
फड़की से,
जो वहां घोंसला बनाकर, अंडे भी रख चुकी थी अपने,
उसकी ख़ुशी से मुझे अंदाजा हो गया था,
कि वो मकान, अब घर बन चुका है...

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