आज सोसाइटी के बच्चे, सुबह से खेल रहे हैं...
उन्हें लगता है कि ये छुट्टी का माहौल रोज क्यों नहीं रहता,
और बस्ती के बच्चों में खौफ है,
अगर दो-चार दिन ऐसा ही रहा,
तो दो वक्त की रोटी का इंतजाम कैसे होगा???
धर्म का नहीं...गरीबों की भूख का आज फैसला होगा,
यही कोई दोपहर में तीन-साढ़े तीन बजे.
(पुणे, महाराष्ट्र में अपने दोस्त के घर से)
5 टिप्पणियां:
bahut gehri baat keh di aapne!
सच कह रहे हैं..
सही चिन्तन !
उम्दा बात.........
अब कहां हैं भाई साहब
जनाब, जबलपुर में ही हूँ. आदेश करें.
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