सोमवार, 8 मार्च 2010

लहज़ा

कल रात माँ से ऊँची आवाज़ में बोल पड़ा,
और वो धीमे लहज़े में बात करती रहीं,
जब से होश संभाला है,
उसके बाद पहली बार ऐसा हुआ,
काफी बुरा लगा मुझे,
अब सोच रहा हूँ कि,
होश न संभालता तो ही अच्छा था...
sorry माँ,
पर मेरी माँ बहुत अच्छी हैं,
वो मुझसे नाराज़ ही नहीं होतीं...

कोई टिप्पणी नहीं: