सोमवार, 1 मार्च 2010

अलगाव

गमले से बाहर पड़ा हुआ पौधा,
बड़ी उम्मीद से टकटकी लगाये,
देख रहा है उस गमले को,
जिसमें कभी वो गहराई तक जमा था,
आज सुबह उसे माली ने उखाड़ दिया,
क्योंकि न तो वो बढ़ रहा था,
और न ही फल-फूल रहा था...

1 टिप्पणी:

Udan Tashtari ने कहा…

वाह! बहुत उम्दा भाव!


ये रंग भरा त्यौहार, चलो हम होली खेलें
प्रीत की बहे बयार, चलो हम होली खेलें.
पाले जितने द्वेष, चलो उनको बिसरा दें,
खुशी की हो बौछार,चलो हम होली खेलें.


आप एवं आपके परिवार को होली मुबारक.

-समीर लाल ’समीर’