मंगलवार, 17 नवंबर 2009

मिज़ाज़

पिछले दो दिनों से, जब से मैं शहर लौट कर आया हूँ, बहुत कुछ बदल गया है. मौसम का मिज़ाज़ भी उनमें से एक है और इस बदले हुए मिज़ाज़ की वजह से ही तो मैं इतनी रात गए ऑफिस में बैठे ब्लॉग लिख रहा हूँ. अपने बहुत ही ख़ास दोस्त के साथ मूवी देखने गया था "अजब प्रेम की गज़ब कहानी". हालाँकि इससे पहले भी मैं भी ये मूवी देख चुका हूँ. पर आज मेरे दोस्त के कैट के इम्तिहान ख़त्म हुए तो उसके साथ जाना पड़ गया. मना करने का सवाल ही नहीं उठता, आखिर ख़ास जो ठहरा. मूवी देखते हुए उसने भी आज की पीढ़ी के बदले हुए मिजाज़ की बात कही. उसने कहा कि आज-कल की फिल्म्स में कहानी थोड़ी बदल गयी है, हीरो-हीरोइन अब एक-दूसरे प्यार नहीं करते. फिल्म की कहानी में शुरुआत से लेकर, आखिर के थोड़े पहले तक वो किसी और से प्यार करते हैं और फिल्म के ख़त्म होते-होते उन्हें एक-दूसरे से प्यार हो जाता है. आज की पीढ़ी का मिजाज़ भी कुछ ऐसा ही हो गया है शायद, वो किसी को प्यार करते-करते किसी और से प्यार कर बैठते हैं और फिर कहानी पूरी तरह से फ़िल्मी बन जाती है. फर्क इतना होता है कि फिल्म में कौन हीरो है और कौन हीरोइन, ये सबको मालूम होता है. तीन घंटे की पटकथा का सुखान्त हो ही जाता है. पर जिंदगी की पटकथा में कौन क्या है, ये तो खुद जिंदगी भी नहीं जानती. हाँ, एक बात ज़रूर है कि इंसान अपनी चाल से चलता रहता है. इसी उम्मीद के साथ कि शायद आगे कुछ अच्छा ही होगा. पर जिसने अपनी चाल पर चलते-चलते किसी के साथ अच्छा न किया हो तो क्या उसे अच्छे की उम्मीद करनी चाहिए? सच तो ये भी है कि जो अच्छा करता है वो भी अच्छे की उम्मीद न ही करे तो बेहतर है. कई बार सारी चीज़ें, सारी बातें अपनी जगह पर एकदम सटीक होती हैं लेकिन सबके लिए सटीक हों ये ज़रूरी नहीं है. किसी को ये लगता है कि नवम्बर में होने वाली बारिश महंगाई और सूखे से राहत देगी तो किसी को लगता है कि मौसम की चाल डगमगा गयी है. किसी को फिक्र है तो कोई खौफज़दा है. किसी को लगता है कि प्यार के लिए दो पल ही काफी हैं, बाकी वक़्त दूसरे काम भी ज़रूरी हैं तो किसी को लगता है कि प्यार के लिए 24 घंटे भी कम हैं. किसी को लगता ही कि खुद के प्रति लापरवाह रवैया आपकी पहिचान मिटा देगा तो किसी को लगता है कि दूसरों का उसके प्रति लापरवाह रवैया उसकी पहिचान मिटा देगा. कोई स्वार्थी है, कोई कम स्वार्थी और कोई ज्यादा स्वार्थी हैं. कोई खुद के लिए है, कोई अपने परिवार के लिए. पर सब स्वार्थी हैं. सब को कुछ न कुछ चाहिए. कुछ को सब कुछ मिल जाता है तो किसी को कुछ भी नहीं. ऐसा भी कई बार होता है कि आपके हाथ की चीज़ किसी और के हाथ में चली जाये या कोई और उसे छीन ले. थोड़े देर पहले आप मुस्कुरा रहे होते हैं तो थोड़ी देर बाद ग़मगीन हो जाते हैं. मिजाज़ किसी का भी हो, बदलने में वक़्त नहीं लगता. मौसम तो हमें सिखाता है कि बदलती हुई चीज़ों का सामना हम कैसे कर सकते हैं, हाँ! ये अलग बात है कि कई बार हम बारिश में ज्यादा भीग जाते हैं तो कभी कम. लेकिन भीगते ज़रूर हैं. मैं भी तो बदले हुए मिज़ाज़ की बदौलत ही तो  यहाँ बैठा हुआ हूँ. मेरे पास दो ही विकल्प हैं, या तो बारिश में बाहर निकल जाऊं या फिर बारिश के बंद होने का इंतज़ार करूँ. ये भी मिज़ाज़ की बात है.

मंगलवार, 3 नवंबर 2009

इस्तीफा

Dear Sir,
पिछले कई महीनों में मैंने आपको अपनी व्यवसायिक समस्याएं व्यक्तिगत तौर पर बताने के बाद ही ई-मेल का सहारा लिया था. पर अब तक किसी तरह का ठोस समाधान मुझे नहीं दिया गया है. मौखिक तौर पर जो भी बातें अब तक सामने आयीं, जैसे कि - ऊपर वाले कुछ कर रहे हैं, ऊपर बात हुई है उन्होंने कहा है कि कुछ करते हैं. इत्यादि.  पर अब तक क्या हुआ है, कुछ भी जानकारी नहीं दी गयी है.  कुछ चीज़ें जो मैंने आपसे मांगी हैं, वो increment, appraisal, promotion और bonus हैं. कोई भी मेहनती, ईमानदार एवं कर्तव्यनिष्ठ कर्मचारी अपनी कंपनी से शायद इन्ही चीज़ों की मांग करता है. मैं ये पूछते-पूछते हताश हो चुका हूँ कि क्या कंपनी मेरे  लिए कुछ कर रही है, हाँ या न? कोई जवाब नहीं मिला है. और जवाब न मिलने से मनोबल लगातार गिर रहा है और मानसिक परेशानी भी बढ़ रही है. मानसिक तनाव के चलते मेरा व्यक्तिगत जीवन भी प्रभावित हो रहा है. इस परेशानी को बर्दाश्त करने की मुझमें हिम्मत बहुत है लेकिन अब मैं इसे और बर्दाश्त नहीं करना चाहता. अब मुझे ऐसा लगने लगा है कि मैं शुरू से लेकर अभी तक अपने कार्यों के अतिरिक्त जो कार्य (Company name) के लिए कर चुका हूँ, शायद व्यर्थ थे. चाहे वो कंपनी के लिए working hours से ज्यादा 12-14 hours काम करना हो या फिर अवकाश के दिन भी अपनी सेवाएं देने में पीछे न हटना.  कंपनी का मेरे प्रति लापरवाह रवैया होने से मेरे अन्दर का धैर्य जवाब दे चुका है और इसी धैर्य के समाप्त होने की वजह से मैं (Company name) को अपनी कर्त्व्यनिष्ठाता और कार्यों का मालिक होने के अधिकार से वंचित करता हूँ. इस वचन को संपूर्ण मानते हुए मेरे पद से मेरे इस्तीफे को मंज़ूर किया जाये. चूँकि कंपनी मेरे प्रति लापरवाह है किन्तु मुझमें थोड़ा विवेक बाकी है, अतः कंपनी को अगले सात दिनों तक मैं अपनी आपातकालीन सेवा दूंगा जिसमें कंपनी के मुझसे जुड़े हुए कार्यों का नुकसान न हो. ज्ञात हो मेरे इस कठोर कदम के लिए (Company name) का मेरे प्रति लापरवाह रवैया उत्तरदायी है जिसका ज़िक्र मैं अभी तथा पूर्व की सूचनाओं में कर चुका हूँ. मुझे उम्मीद है कि कंपनी मेरा अनुभव प्रमाण पत्र, चारित्रिक प्रमाण पत्र, वेतनमान और देयक देने में लापरवाही नहीं बरतेगी.
Regards
एक कर्तव्यनिष्ठ और मेहनती कर्मचारी.