बुधवार, 22 अक्तूबर 2014

लेखक पीड़ा में ही जन्म लेते हैं.

किसी लेखक के पैदा होने पर उसकी माँ को होने वाली प्रसव पीड़ा अन्य माताओं से अधिक होती है. जन्म के समय से ही निर्धारित हो जाता है कि जब वह अपने कौशल की प्रथम सीढ़ी पर पैर रखेगा और लेखक के रूप में संसार के सामने अवतरित होने की चेष्टा करेगा तो निश्चित रूप से उसे भी उतनी ही पीड़ा का अनुभव होगा जितना कि प्रसव के समय उसकी माँ ने किया था.
जब बाहर शोर हो रहा होता है तो अन्दर का ख़ालीपन बढ़ जाता है. कुछ लोग ऐसी परिस्थिति से भयभीत होकर ख़ुद ही उस शोर का हिस्सा बन जाते हैं. ताकि उनका ख़ालीपन इतना न बढ़ जाए कि वो शत्रु की सेना के समान उन्हें ही घेर ले. इस तरह की परिस्थितियों से एक लेखक कभी नहीं भागता. वे चाहे उसे कितना भी विचलित करने की कोशिश कर लें लेकिन वह बिना उनका सम्पूर्ण अनुभव लिए बाहर नहीं आता. वो इस उम्मीद में उनका डटकर सामना करता है कि हो सकता है उनसे प्राप्त अनुभूति उसकी अगली रचना के लिए प्रेरणा स्त्रोत बन जाए. हालाँकि ऐसा करना बहुत पीड़ादायक होता है और लेखक पीड़ा में ही जन्म लेते हैं. किसी लेखक के पैदा होने पर उसकी माँ को होने वाली प्रसव पीड़ा अन्य माताओं से अधिक होती है. जन्म के समय से ही निर्धारित हो जाता है कि जब वह अपने कौशल की प्रथम सीढ़ी पर पैर रखेगा और लेखक के रूप में संसार के सामने अवतरित होने की चेष्टा करेगा तो निश्चित रूप से उसे भी उतनी ही पीड़ा का अनुभव होगा जितना कि प्रसव के समय उसकी माँ ने किया था. माँ के लिए यह पीड़ा सहन करना इसलिए सरल होता है क्योंकि जो उसके भीतर था, जिसकी वह महीनों से कल्पना मात्र कर रही थी. उसकी वही कल्पना आज एक रचना के रूप में उसके हाथों में होगी. जब लेखक अपनी कल्पना के लिए प्रेरणा स्त्रोत ढूँढ रहा होता है तब वह भी पीड़ा के हर स्तर को पार करने की क्षमता रखता है. जब उसकी कल्पना सजीव होती है तो उसे भी माँ बनने का ही आनंद प्राप्त होता है. जिस तरह एक माँ के लिए अपनी संतानों में यह चयन करना कठिन होता है कि कौन उसे सबसे अधिक प्रिय है उसी तरह एक लेखक लिए भी यह चुनौती ही होती है कि वह अपनी किस रचना को श्रोताओं या पाठकों के सामने सबसे पहले प्रस्तुत करे. बस यहीं से एक लेखक और माँ में अंतर आ जाता है. माँ अपनी कमज़ोर संतान को ज़्यादा अवसर उपलब्ध कराती है लेकिन एक लेखक अपनी सबसे अच्छी रचना को श्रोताओं या दर्शकों के सामने सबसे पहले प्रस्तुत करता है. इस तरह से माँ अपने धर्म का पालन करती है और लेखक अपने परिवार का. एक लेखक के लिए व्यवसायिक होना उतना ही आवश्यक है जितना कि उम्र के सही पड़ाव में म्रत्यु का होना. दोनों ही परिस्थितियों में जीवन-यापन सरल नहीं होता क्योंकि लेखक भी पेट और जिम्मेदारियों के साथ ही पैदा होते हैं.