कॉफी हाउस की कुर्सियाँ,
दिन भर खड़े-खड़े थक जाती हैं,
तभी तो,
देर रात को,
टेबल पर,
पलटकर बैठ जाती हैं....
ज़िंदा होने का प्रमाण है बेचैनी, विचारों में उथल-पुथल की ज़िम्मेदार है बेचैनी, जीवन को गति देने का काम करती है बेचैनी, परिवर्तन को हवा देती है बेचैनी...
मंगलवार, 13 जुलाई 2010
मंगलवार, 6 जुलाई 2010
डायलॉग
जब ज़िन्दगी चंद इत्तेफाकों की मोहताज हो जाये तो फिर ज़िन्दगी खुदके अंदाज़ में जीना बेहतर है...(ऐसे ही ख्याल आया...जब कोई फिल्म बनाऊंगा तो उसमें ये डायलॉग ज़रूर रखूँगा.)
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