मंगलवार, 9 मार्च 2010

मेहनत

कभी सोचा है
किसी रिश्ते को गढ़ने में,
जितना वक़्त लगता है,
उससे कहीं कम,
उसे उधेड़ने में,
लेकिन जो मेहनत,
उधेड़ने में लग रही है,
वही उसे संवारने में होती,
तो,
तो न चेहरे पे शिकन होती,
न दिल में हरारत,
और न ही फ़िज़ूल के ख्याल.

1 टिप्पणी:

निर्मला कपिला ने कहा…

बहुत सही और सुन्दर बात कही । बहुत अच्छी लगी ये रचना शुभकामनायें